भारत एक कृषि प्रधान एवं ग्रामीण सम्पन्न देश है। भारत की खेती और उद्योग मानसून पर आधारित रहे हैं। अगर देश में मानसून समय से आता है तो खेती अच्छी होती है। पानी की चमक समाज के हर वर्ग में देखने को मिलती है। भारत की खेती और किसान का जीवन पानी के बिना वीरान और सूना है। पानी के बिना उसमें न तो उत्साह होता है और न ही उमंग। पानी के बिना उसके जीवन में पराधीनता की झलक दिखाई देती है। अच्छी वर्षा के बिना अच्छी खेती नहीं होती। देश की अधिकांश जनसंख्या गाँव में रहती है। उसका जीवन खेती पर ही आधारित होता है। बिना पानी के उनका जीवन कष्टप्रद व्यतीत होता है।
बरसात के दिनों में अच्छी बरसात होती है तो भारतीय किसान के लिये पूरे साल का संवत बन जाता है। समाज में और देश में खुशहाली का वातावरण बना रहता है। देश का प्रगति चक्र भी ठीक रहता है।
हमारे देश में कृषि को भी पर्व और उत्सव के रूप में देखा जाता है। देश में जितनी अच्छी पैदावार होती है और उसका उचित मूल्य भी मिल जाता है, तो गाँव से लेकर बड़े-बड़े शहरों के बाजारों में गहमा-गहमी भी बढ़ जाती है। बाजार की गहमा-गहमी इस बात का सबूत है कि समाज में उत्साह है, उमंग है, खुशहाली है और समाज प्रगतिशील है।
परन्तु राजस्थान वर्षा की दृष्टि से वंचित प्रदेश है। सीमित एवं कम वर्षा तथा रेतीली मिट्टी के कारण यहाँ कृषि जल एवं पेयजल की समस्या हमेशा बनी रहती है। विपरीत प्राकृतिक परिस्थितियों के बावजूद राजस्थान सबसे सघन आबादी वाला मरुस्थल है। हमारे पूर्वजों ने यहाँ की जलवायु एवं वर्षाचक्र को समझते हुए अपने जनजीवन को प्रकृति के अनुसार ढाल लिया और आजीविका चलाने के कई तरीके विकसित किये। खेती के लिये वर्षाजल संरक्षित करने के लिये कुछ परम्परागत ढाँचे (खड़ीन) बनाए गए जीनमें आज भी अकाल के वर्षों में भी फसल प्राप्त हो जाती है। वर्षाजल पीने योग्य शुद्ध होता है। पेयजल के लिये वर्षा जल संग्रहण संरचनाएँ जैसे टांका, बेरी, नाड़ी आदि हमारे पूर्वजों की देन है। ये सभी परम्परागत तकनीकें उन्होंने स्थानीय जलवायु, मनुष्य की आवश्यकता और सुलभता के आधार पर लोक व्यवहार एवं ज्ञान से विकसित की गई।
विज्ञान निरन्तर प्रगति कर रहा है, परन्तु राजस्थान की सूखी जलवायु और पानी की कमी का समाधान आज भी विज्ञान के पास नहीं है। आज के परिप्रेक्ष्य मे भी प्राचीन परम्परागत जल संग्रहण विधियाँ ही कृषि और लोक जीवन को जीवित रखने में अधिक कारगर है। इन अनमोल विधियों को एक समय के अनुसार कुछ तकनीकी सुधार कर इनके प्रयोग द्वारा हम अवश्य कुछ हद तक पानी की समस्या से निदान पा सकते हैं।
जल संरक्षण